Saturday, April 25, 2009

मिला था कल जो हमें,

मिला था कल जो हमें बहरे - बेकरां की तरहं
भटक रहा है वो अब दशत में फुगाँ क तरहं।

हमारे बाद ज़माने में जुस्तजू वालो,
करोगे याद हमें सई ये रायगाँ की तरहं।

हम उसकी आँख में ज़र्रे से भी हकीर सही,
हम उसके दिल में खटकते हैं आस्मां की तरहं।

वो कैसे कैसे गुलामी के दौर याद आए,
मिला जो हमसे कोई शख्स हुक्मरां की तरहं।

मेरी खुदी का  स्वयंवर भी क्या स्वयंवर था
मेरी ही ज़ात ने  तोड़ा मुझे कमां की तरहं 

उसी के नाम की तख्ती थी सब किवाडों पर,
जो उठ चुका था किराये पे ख़ुद मकां की तरहाँ।

अब एक बर्फ का सहरा है और हम तलअत,
सुलग रहे हैं समन्दर की दास्ताँ की तरहं।
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4 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

GANGA DHAR SHARMA said...

really very good thoughts in the form of poetry

रचना गौड़ ’भारती’ said...

उसी के नाम की तख्ती थी सब किवाडों पर,
जो उठ चुका था किराये पे ख़ुद मकां की तरहाँ।
बहु्त खूब तलत साहिब
मुझे भी आशिर्वाद दें

वीना श्रीवास्तव said...

lekhni ka pravah kayam rahe very nice