Monday, April 27, 2009

बुझा है इक चिरागे दिल

बुझा है इक चिरागे दिल तो क्या है,
तुम्हारा नाम रौशन हो गया है ।

तुम्हीं से जब नही कोई तआल्लुक
मेरा जीना न जीना एक सा है।

तेरे जाने के बाद ए दोस्त हम पर,
जो गुजरी है वो दिल ही जानता है।

सरासर कुफ्र है उस बुत को छूना,
वो इस दर्जा मुक़द्दस हो गया है।

कहीं मुंह चूम ले उसका न कोई,
वो शायद इस लिए कम बोलता है।

हमी ने दर्द को बख्शी है अज़मत,
हमी को दर्द ने रुसवा किया है।

हयात इक दार है तलअत की जिस पर,
अज़ल से आदमी लटका हुआ है।
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