Saturday, April 18, 2009

सूरज को डूबने से

सूरज को डूबने से बचाओ कि गावों में,
तालाब सूख जाएगा बरगद की छाओं में।

उतरे गले से ज़हर समंदर का तो बताएं
गंगा कहाँ छिपी है हमारी जटाओं में।

क्या ही बुरा था नूर का चस्का कि दोस्तो,
हम जल बुझे हयात कि अंधी गुफाओं में।

सर से कुछ इस तरह वो हथेली जुदा हुई,
सुर्खी सी फैलने लगी चारों दिशाओं में।

छुटता नहीं है जिस्म से यह गेरुआ लिबास,
मिलते नहीं हैं राम भरत को खडावोँ में।

दिल तो खुशी के मारे परिंदा सा हो गया,
देखा जो हमने चाँद को छुप कर घटाओं में।

रोज़े अज़ल खुदा से अजब वास्ता पड़ा,
तुझ बिन भटक रहे हैं हम अब तक खलाओ में।

तलअत हरेक शख्स कहीं खो के रह गया,
गूंजे जब आन्सुओं के तराने फज़ाओ में।
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Friday, April 17, 2009

प्यासे रंग सुलगती आंखे

प्यासे रंग सुलगती आंखे मंज़रे-शम्स उठायें क्या,
धूल अटी वादी के परिंदे पार नदी के जायें क्या।

टूटे पुल के पास नदी में चाँद अभी तो डूबा है,
शाख़ बुरीदा पेड़ को जुगनू शब् का गीत सुनाएँ क्या।

मुमकिन था सब एक नज़र में साफ़ दिखाई दे जाता,
लेकिन हम सब सोच रहे थे आँख से बाहर आयें क्या।

दुश्मन की दहलीज़ नहीं थी जंजीरे अहसास तो थी,
वरना लहू के रंग तक आकर हम और वापिस जायें क्या।

तिरछी पैनी काट नज़र की पावों के तलवों तक पहुँची,
धड़कन धड़कन डूबते दिल का हाल लबों पर लायें क्या।

तेरी गली से अपने दर तक खून थूकते लोटे हैं,
क़र्ज़ तेरी बीमार सदा का अब हम और चुकायें क्या।

साहिल पर वो हाथ हवा में हिलते हिलते झूल गया,
आज सफ़र के नाम पे तलत हम पतवार उठायें क्या।
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Tuesday, April 14, 2009

शाम ढले

शाम ढले परबत को हमने सौंपे बंधनवार नए,
सतरंगीं सुबहों के खिंचते खुलते बंधते तार नए।

ख्वाहिश जैसी उन आंखों में चाँद न था चौपाटी थी,
और लबों पर साफ़ लिखे थे लज्ज़त के इज़हार नए।

ताज महल से उस गुम्बद पर चाँद कहाँ जा कर डूबा,
खोल दिए जब मेरे अन्दर उसने मेरे मज़ार नए।

खोलो हाथ! चले पुरवाई, आने दो बारिश, भीगें
बर्के बदन से झाँक रहे हैं रौशन रंग हज़ार नए।

तलअत यह दुःख तो मेहनत की रोटी का इक हिस्सा है,
बेच के अपने तन के कपडे घर में रख औज़ार नए।
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