Saturday, April 18, 2009

सूरज को डूबने से

सूरज को डूबने से बचाओ कि गावों में,
तालाब सूख जाएगा बरगद की छाओं में।

उतरे गले से ज़हर समंदर का तो बताएं
गंगा कहाँ छिपी है हमारी जटाओं में।

क्या ही बुरा था नूर का चस्का कि दोस्तो,
हम जल बुझे हयात कि अंधी गुफाओं में।

सर से कुछ इस तरह वो हथेली जुदा हुई,
सुर्खी सी फैलने लगी चारों दिशाओं में।

छुटता नहीं है जिस्म से यह गेरुआ लिबास,
मिलते नहीं हैं राम भरत को खडावोँ में।

दिल तो खुशी के मारे परिंदा सा हो गया,
देखा जो हमने चाँद को छुप कर घटाओं में।

रोज़े अज़ल खुदा से अजब वास्ता पड़ा,
तुझ बिन भटक रहे हैं हम अब तक खलाओ में।

तलअत हरेक शख्स कहीं खो के रह गया,
गूंजे जब आन्सुओं के तराने फज़ाओ में।
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