Saturday, April 25, 2009

दिल कहाँ दरिया हुआ

दिल कहाँ दरिया हुआ, दीवार कब साबित हुआ,
प्यास आंखों में उतर आयी तो सब साबित हुआ।

मैं तो मिट्टी हो गया उसके लहू की बूँद पर,
वो मेरी मिट्टी से यूँ उट्ठा के रब साबित हुआ।

रात की बारिश ने धो डाले सभी के इश्तहार,
कौन कितने पानियों में है ये अब साबित हुआ।

लोग फिर काले दिनों के नाम ख़त लिखने लगे,
धुप से उनका तआल्लुक, बेसबब साबित हुआ।

हम चुरा लाये थे माबद से ख़ुदा सुन कर जिसे,
वो किसी टूटे हुए बुत का अक़ब साबित हुआ।

रंग तक ला कर हुआ महफ़िल से ख़ुद ही मुनहरिफ़,
कौन तलअत सा भी यारो ! बे अदब साबित हुआ।
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