हुआ यूँ, एक दिन जब
रास्त गोई के तअल्लुक से,
मैं उसके सामने हाज़िर हुआ तो
उसने मेरी ज़ात की तफ़सील मांगी।
मैं के यूँ तो रास्त गोई के लिए मशहूर,
उसके नाम से लेकिन हमेशां
खाय्फ़ो मजबूर
सा महसूस करता आ रहा था,
सिर्फ़ अपने आप में आने को
थोड़ा कसमसाया,
और मुझे यूँ देख कर
वो सादगी से मुस्कुराया।
मैने कुछ सोचा
मगर कहने को जूँ ही सर उठाया,
झूठ सच दोनों ही,
उसके दायें बाएं से निकल कर
सैंकडों चेहरों से मुझ पर हंस रहे थे ,
उसके सर पर अज़दहे की आँख थी
और मेरे पाँव पक्के फर्श पर भी
धंस रहे थे।
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1 comment:
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छी रचनाएं पढ कर अच्छा लगा।
झूठ सच दोनों ही,
उसके दायें बाएं से निकल कर
सैंकडों चेहरों से मुझ पर हंस रहे थे ,
उसके सर पर अज़दहे की आँख थी
और मेरे पाँव पक्के फर्श पर भी
धंस रहे थे।
यह खूब सूरत खयाल बहुत पसन्द आया
श्याम सखा‘श्याम
‘कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
पेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर’
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