Friday, June 26, 2009

लाख घर

तो यह सब जान लेने पर
कि बहार आग है और तुम मकय्यद हो,
मकय्यद यूँ कि अन्दर की चटखनी तो
चढा कर सो गए लेकिन
जब उठ्ठे हो तो बहार आग है
और सब तरफ़ अन्दर अँधेरा है।
तुम्हारे हाथ में ताली से लगता है
तुम्हें मालूम है अन्दर के दरवाज़ा कहाँ पर है,
चटखनी किस तरहां कि और ताला कब लगाया था।
तुम्हें यह भी भरोसा है
कि बिस्तर पर पडे रह कर भी
तुम ताला चटखनी और दरवाज़ा वगैरा खोल सकते हो।
यह मुमकिन है
तुम्हारे चाहने भर से
चटखनी घूम जाए, टूट कर ताला गिरे दरवाज़ा खुल जाए,
मगर यह भी तो मुमकिन है
कि जब तक तुम यह सब जादू जगा पाओ !
हवा उन रास्तों को आग से मसदूद कर जाए
जो तुम ने बच निकालने के लिए तैय्यार सोचे हों।
तो फिर यह जान लेने पर
कि बहार आग है और तुम मकय्यद हो
कि अन्दर कि चटखनी तो चढा कर सो गए
लेकिन जब उठ्ठे हो तो अब
तो जाग भी जाओ,
कि बहार आग है, अन्दर अँधेरा
और सफ़र बाकी।

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