Tuesday, June 16, 2009

हिचकियाँ

हम नशे में गलियां देती हवा से लड़ रहे थे,
हम नशे में थे
हवा जब गलियां देती हुयी गुज़री,
तो हम खुल कर हंसे, हंसते रहे।
लेकिन,
तभी तूने हमारे नाम से हम को पुकारा,
डूबने वाले के जैसे हाथ पर ला कर
कोई रख दे किनारा।

और तब हम यक बयक रोने लगे,
रोते रहे, रोते रहे थे।
क्यों की जो बाकी था
सब आंसू थे या आंखे की जो कुछ था,
वो तेरे नाम की बस हिचकियाँ सी खा रहा था,
और तू हमे छू कर,
हवा के साथ वापिस जा रहा था।
--------------------------------

No comments: