बदन उसका अगर चेहरा नहीं है,
तो फिर तुमने उसे देखा नहीं है।
दरख्तों पर वही पत्ते हैं बाकी,
के जिनका धूप से रिश्ता नहीं है।
वहां पहुँचा हूँ तुमसे बात करने,
जहाँ आवाज़ को रस्ता नहीं है।
सभी चेहरे मकम्मल हो चुके हैं ,
कोई अहसास अब तन्हा नहीं है।
वाही रफ़्तार है तलअत हवा की,
मगर बादल का वह टुकडा नहीं है।
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