Sunday, July 5, 2009

मैं आया

बिछ्ड्ते वक्त ,
पिछली मर्तबा उसने कहा था
"तुम ज़रूर आना !"
कहा था
"वक्त मिलते ही ज़रूर आना"!
मैं आया
किस तरहं आया
न जाने किस तरहं आया?
मगर अब
उसकी आंखों से
मेरी पहचान गायब है
कहाँ जाऊं?
मैं जाऊं?
लौट जाऊं?
लौटना मेरा मुक्कद्दर है।
मगर, ऐ काश !
बस इक बार वह आंखें उठा कर देख ले
और सिर्फ़ इतना पूछ ले मुझसे
"तुम आए हो ?"
के पिछली मर्तबा उसने कहा था
"तुम ज़रूर आना!"

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