कौन पकाए उनके नक इरादों को,
कच्ची शोहरत मार गयी शहज़ादों को।
रंग बिरंगी कीलें उगीं हवाओं में,
दिन जब सौंपा हमने तेरे वादों को।
अब शीशे के ऐसे रौशनदान कहाँ,
दिल में जो रख लें पत्थर सी यादों को।
जाने कैसे वक्त नदी का पुल टूटा,
लौट लिए सब पानी की फरियादों को,
साहिल काला जादू सब्ज़ हवाओं का,
नीले खेल सिखाये सुर्ख़ मुरादों को।
तख्ती तैर रही है काले पानी पर,
तलअत खाक मिले इज्ज़त उस्तादों को।
--------------
-------
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment